Sunday, May 30, 2010

बचपन की बातें










याद आती  है, वो बचपन की बातें.
मस्ती के दिन, और बेफिक्र रातें.
वो बस्ते से ज्यादा, टिफिन में ध्यान देना.
न चाहते हुए भी, सबसे ज्ञान(सबक) लेना.
वो पीछे की बेंच पर बैठे, दोस्त को सताना.
वो बहार खड़े  भाई को चिढाने के लिए, बाथरूम में गाना.
वो कांच की गोलियों को, डब्बे  में जमा करना.
वो शादी में जाकर, खूब मजे करना.
धूप की चिंता ना, बारिश की फ़िक्र.
अपनी हर बात्तों में, कल देखी फिल्म, का जिक्र.
हो कोई भी मौसम, वो लगता था सुहाना.
गर मूड नहीं स्कूल जाने का तो, पेट पकड़ कर, लेट जाना,
काश वो दिन, हम फिर , अतीत से ढून्ढ लाते.
याद आती है, वो बचपन की बातें.
मस्ती के दिन, और बेफिक्र रातें.

Wednesday, May 19, 2010

पता नहीं ज्यादातर तूफ़ान औरतो के नाम से क्यों रखे जाते है.

रीटा, केटरीना,लिली और अब लैला.
चारो तरफ औरतो के नाम वाला तूफ़ान फैला.
पता नहीं ज्यादातर तूफ़ान औरतो के नाम से  क्यों रखे जाते है.
क्या पुरुष प्रधान समाज, तूफ़ान को, औरत का प्रायावाची बनाना चाहते है.
इस बारे में ज्यादा नहीं कहूँगा.नहीं तो लिंगभेद वाली टिपिनिया हो जायेंगी.
और पड़ लिया मेरी बीबी ने ये पोस्ट, तो मुझे भुन कर, खा जाएँगी.
लो दूसरो को सवाल पूछते-पूछते में  भी, स्त्री बिरोधी टिपिनी कर गया.
अपनी बीबी को इंसान नहीं ड्राकुला साबित कर गया.
यही तो समाज में भी हो रहा है.
खुद गलत काम करने वाला, सत्यवादी बन रहा है.
छोड़ो यार हटाओ अपने सिर से ये झूठ का थैला.
रीटा, केटरीना,लिली और अब लैला.
चारो तरफ औरतो के नाम वाला तूफ़ान फैला.

Wednesday, May 12, 2010

अगर मिलता तो लेते नहीं?

अगर मिलती हमें रिश्वत, तो क्या हम लेते नहीं?
अगर इतना ईमान होता, तो रिश्वत  देते नहीं.
पुलिस वालो को आसानी से मिल जाता है.इसलिए वे ले लेते है.
हम देश की फिकर करने वाले, थोडा गलत काम करते है, इसलिए दे देते है.
वाह भ्र्स्ठाचार की दुहाई देने वाले हम लोग.
जो  भ्र्ठाचार के दैत्य को लगाते है खुद भोग.
और बड़ी बड़ी बातें करते है.
आवाज उठाने में पीछे दुबकते है.
अगर होते इतने बड़े ईमानदार तो इस कदर इस पाप को सहते नहीं
अगर मिलती हमें रिश्वत, तो क्या हम सही में लेते नहीं?