Thursday, July 15, 2010

बन गया आदमी जानवर








दिल करता है, भाग जांऊ. पर कहाँ?
मन कहता है, छिप जांऊ, पर कहाँ?
मेने ही  तो,इस दुनिया को ऐंसा बनाया है.
झूठ को मेने रिश्वत के चादर के नीचे छुपाया है
अन्नाय के खिलाफ, कुछ करने वाले को, गाँधी के तीन बंदरो वाला उपदेश समझाया है.
चारो और साम्प्रदायिकता का जहर फैलाया है.
अब खुद बैचैन हूँ, तो भागने कि बात करता हूँ.
अपने बनाये माहोल से छिप जाने कि बात कहता  हूँ.
अपने को ही कोसने  वाला, में लगभग खत्म तेरा ईमान हूँ.
पहली बार मेहनत से कमाया हुआ. तेरे घर का सामान हूँ.
घिन आती है, मुझे खुद पर कि, क्या बन गया में इंसान हूँ.