लो आ गए आप सब, मोमबत्ती जलाए हुए।
अपना सब काम छोड़, ब्यवस्था से सताए हुए।
ऐंसा क्या हुआ कि, सारा आवाम सड़को में उमड़ आया।
दर्द मुझे हुआ और,आंसुओं का बादल तुम्हारी आँखों में घुमड़ आया।
तब तुम कहाँ थे? जब मेरा शरीर ख़तम हो रहा था।
तब तुम कहाँ थे?जब तुम्हारी कथित "आधुनिक" सडको पर मुझ पर सितम हो रहा था।
"मेरा काम नहीं था'', यह कह कर तुम, अपना दामन छुड़ा सकते हो।
हमने नहीं देखा, यह कर कर तुम मुझे, झुठला सकते हो।
पर तब तो, तुम थे,जब गुवाहाटी की सडको पर मुझे, जालिम नोच रहे थे।
मुझे बचाते, मेरा दोस्त मुंबई मे मर गया , तब तुम क्या सोच रहे थे?
में कई वर्षो से समाज की बनायीं हुई "इज्जत" खोकर, अस्पताल में जी रही हूँ।
इन कुछ उदारण से तुम्हे अहसास करा रही हूँ।
कि तब तो तुम होते हो,जब तुम्हारे दोस्त मुझ पर फब्तियाँ कसते है।
तब तो तुम होते हो, जब तुम्हारे पड़ोस का शराबी, हम पर ज्यादतियाँ करते है।
तुम, मुझे रोज टीवी पर उपभोग की वस्तु बना हुआ देख, हँसते हो।
तुम, संस्कार के नाम पर अपने घरो में भी, सिर्फ मुझे ही जंजीरों में जड़ते हो।
अब आ ही गए हो तो, एक अहसान कर देना।
एक और "दामिनी" को ना बनने देना।
पर मुझे पता है, तुम नए साल की ख़ुशी में डूब जाओगे,
और, जैंसा अभी तक तम भूले हो , वैसे ही ये बात भी भूल जायोगे।
..........................................अनूप जोशी .....................................