याद आती है, वो बचपन की बातें.
वो बस्ते से ज्यादा, टिफिन में ध्यान देना.
न चाहते हुए भी, सबसे ज्ञान(सबक) लेना.
वो पीछे की बेंच पर बैठे, दोस्त को सताना.
वो बहार खड़े भाई को चिढाने के लिए, बाथरूम में गाना.
वो कांच की गोलियों को, डब्बे में जमा करना.
वो शादी में जाकर, खूब मजे करना.
धूप की चिंता ना, बारिश की फ़िक्र.
अपनी हर बात्तों में, कल देखी फिल्म, का जिक्र.
हो कोई भी मौसम, वो लगता था सुहाना.
गर मूड नहीं स्कूल जाने का तो, पेट पकड़ कर, लेट जाना,
काश वो दिन, हम फिर , अतीत से ढून्ढ लाते.
याद आती है, वो बचपन की बातें.
मस्ती के दिन, और बेफिक्र रातें.
6 comments:
joshi ji blog aapka padha. ek baat kahata hoo aap bhootkaal per jayadaa bhavishya per kum likhate hai. bhavishya or vartmaan par likhe. or likhte hi rahe
Thanks
जोशी जी प्रणाम !
आप के ब्लॉग पे पहले बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हुआ है , खूब सूरत अभिव्यक्ति है आप की , कविता पढ़ मनो बचपन में घूम आया , आप अच्चा लिखे , सुंदर लिखते रहे , ऐसी कामना है ,
आभार
mayka yad aa gya .
shukriya
बहुत खूब। आपने तो बहुत दिनों बाद मुझे भी कुछ याद दिला दिया। धन्यवाद और शुभकामनाएं।
http://udbhavna.blogspot.com/
अनूप जी सरल और निष्कपट भावाव्यक्ति , आपके भावुक स्वभाव
का इशारा करती है । वास्तव में इंसान इसी तरह सरल आचरण
वाला हो..तो भगवान के करीब ही होता है..लेकिन मुझे एक बात
खटकी..वो इसलिये कि आप जिस रुचि से मेरे आध्यात्मिक ब्लाग
को पङते हैं वो प्रशंशनीय है..और जाहिर है कि भक्ति भाव आप में होना
चाहिये..पर आपकी रचनाओं में कहीं उसकी झलक नहीं हैं..दूसरे आपने
प्रेतकन्या को एक कहानी की तरह देखा..जबकि उसमें पात्रादि को छोङकर
पूरा वर्णन हकीकत है..और मानव के लिये जो भी अग्यात है..वो सत्य की खोज
ही है..चाहे वह प्रेतों के बारे में ही क्यों न हो..खैर फ़िर भी मैं आपको पसन्द
करता हूँ..और अपना सह्रदय मानता हूँ ..।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
बचपन जो कभी लौट कर् नही आता लेकिन उस की यादो को हम कभी भी भूल नही पाते । उस का सुखद अहसास हमेशा हमारे साथ रहता है।
बढिया....
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