Wednesday, January 12, 2011

जब रोम(भारत) जल रहा था, तो नीरो (मनमोहन) बंसी बजा रहा था.






















मंत्री  यहाँ, घोटालों का व्यापारी बना है.
        पी.ऍम  हमारा, गांधारी बना है.
''आदर्श''  सी.ऍम, विधवाहो का घर लूटता है.
         कुछ भी मांगो तो, तो जनता पर पुलिश का कहर, फूटता है.
कैंसा ये शोर, मचा है.
          लूटने को, अब इस देश में, क्या बचा है?  
अब तो  छोड़ दो, इस ''भारत'' को.
           कब तक सहंगे इस, ''जलालत''  को.
भरोशा कर, तुम नेताओं को  सत्ता दी है.
            पर लगता है, तुमने तो  मदिरा पी है.
तभी तो मध्होसी में, उलटा सीधा बोल रहे हो.
            सोच भी नहीं सकता जो, ऐंसे घोटाले, खोल रहे हो.
वाह मान गए, "तुम" बैमानो को.
            समझते तो पहले भी थे, तुम शैतानो को.
बस, तब हम चुप रहते थे.
             सब कुछ हंस कर, सहते थे,
सोचते थे कि देश हमारा, सोने की खान है,
            कुछ नहीं था, फिर भी कहते ''मेरा देश महान है''
महान तो अब भी है, पर तुम्हारे कारण शर्मसार  है.
            अब समझा में, राजनीती सेवा नहीं,  ब्यापार है,





              


                

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आक्रोश भरी पंक्तियाँ

ZEAL said...

बहुत अच्छी लगी आपकी रचना
आभार।

सहज समाधि आश्रम said...

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