Friday, September 17, 2010

किस बात का खुमार मुझ में है.








किस बात का खुमार मुझ में है.
        क्यों गुस्सा बेशुमार  मुझ में है.
मिला नहीं अभी तक कुछ, और
        अभी से उनसे बिछड़ने के दर्द का गुमार, मुझ में है
सपने, हासिल या अपनाना तो दूर कि बात है.
        उनसे तकरार मुझ में है.
गम से राफ्ता रहा, मेरा हरदम
         और खुशियों के लिए बेकरार दिल, मुझ में है,
खता हुई है कही बार मुझसे भी,
         पर उन गलती को स्वीकार करने वाला ईमान, मुझ में है.
दिल बहुत दुखी था, इसलिए लिख रहा हूँ.
         पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
     क्यों गुस्सा बेसुमार मुझ में है

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10 comments:

ZEAL said...

पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.

bahut sundar rachna .

.

Anonymous said...
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Anonymous said...
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प्रवीण पाण्डेय said...

बचाकर रखिये, कभी न कभी दिशा मिलेगी इन्हें।

Anonymous said...

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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...

Parul kanani said...

waah..kya baat hai!

anoop joshi said...
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निर्मला कपिला said...

दिल बहुत दुखी था, इसलिए लिख रहा हूँ.
पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
दुख मे ही दिल से लिखा जाता है। सुन्दर प्रयास। शुभकामनायें आशीर्वाद।

hempandey said...

क्यों गुस्सा बेसुमार मुझ में है

- इस गुस्से को सही दिशा दे कर निकालने की जरूरत है |

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

खुमार रहने दीजिये...