किस बात का खुमार मुझ में है.
क्यों गुस्सा बेशुमार मुझ में है.
मिला नहीं अभी तक कुछ, औरअभी से उनसे बिछड़ने के दर्द का गुमार, मुझ में है
सपने, हासिल या अपनाना तो दूर कि बात है.
उनसे तकरार मुझ में है.
गम से राफ्ता रहा, मेरा हरदम
और खुशियों के लिए बेकरार दिल, मुझ में है,
खता हुई है कही बार मुझसे भी,
पर उन गलती को स्वीकार करने वाला ईमान, मुझ में है.
दिल बहुत दुखी था, इसलिए लिख रहा हूँ.
पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
क्यों गुस्सा बेसुमार मुझ में है
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10 comments:
पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
bahut sundar rachna .
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बचाकर रखिये, कभी न कभी दिशा मिलेगी इन्हें।
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...
waah..kya baat hai!
दिल बहुत दुखी था, इसलिए लिख रहा हूँ.
पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
दुख मे ही दिल से लिखा जाता है। सुन्दर प्रयास। शुभकामनायें आशीर्वाद।
क्यों गुस्सा बेसुमार मुझ में है
- इस गुस्से को सही दिशा दे कर निकालने की जरूरत है |
खुमार रहने दीजिये...
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