Monday, May 9, 2011

अजीबो गरीब ब्लॉग








(चित्र सयोंजन गूगल image )


पता नहीं क्यों,लिखने को मन नहीं करता,
         ऑफिस से घर जाओ तो,ब्लॉग खोलने को जी है, अखरता.
अब पहले जैंसी बात नहीं रही, इस ब्लॉग जगत में,
         कोई भेद नहीं रहा, लेखन के देवता और भगत में.
पहले हम अच्छे  लिखने वालो को,हर दिन  खोजा  करते थे. 
          कमेन्ट लिखेने के लिए भी, घंटो सोचा करते थे,
प्रिय, आदरनीय कहकर, दूसरे को  सम्भोदित करते थे,
         अपने से अच्छा, दूसरे के लेख को घोषित करते थे,
याद है मुझे, जब ब्लॉग  में,  दो पुराने लेखको की लड़ाई हुई.
          हम सब को ऐंसे लगा, जैंसे हमारी जग हँसाई हुई.
पहले सब  नए लेखको का ,सम्मान  करते थे.
          कुछ प्रॉब्लम हो जाये तो साथ मिल कर  समाधान करते थे.  
अब तो पुराने लेखको ने, ब्लॉग को, अघोषित अलविदा कह दिया.
         और ज्यादातर ने अपने, कमेन्ट के थेले को सी दिया,
अब तो लोग बस, नाम के लिए दूसरे को पढ़ते है.
         और कुछ शब्द पढ़ कर, "बहुत खूब'' लिख, चल निकलते है.
ब्लॉगजगत की ये हालत देख, मन बहुत दुखता है,

          पता नहीं क्यों,लिखने को मन नहीं करता है,
 ऑफिस से घर जाओ तो,ब्लॉग खोलने को जी है, अखरता........(२)



        
       

Tuesday, February 22, 2011

पापा, में पापा बन गया,


















११ अक्टूबर की रात में,
             कोई नहीं था, साथ में,
अचानक, बीबी का फ़ोन आया,
              फ़ोन में खबर सुनी तो, में घबराया,
पत्नी को, पेट में दर्द सता रहा था,
               और में ऑफिस में था,इसलिए घबरा रहा था,
पत्नी के साथ कोई नहीं था,क्यों की delivery डेट, २ नवम्बर की थी,
                 और काफी दिन पहले, दर्द हो रहा था, ये बात बहुत भयंकर  थी.
में कमरे में जाने को तुरंत निकला.
                कठोर दिल मेरा,मोम जैंसा पिघला.
कुछ कोस की दूरी मुझे, कई मील  की लग रही थी,
               कई कुछ गलत न हो जाये, ये भावना अन्दर चुभ रही थी.
घर पहुचते ही में, पत्नी को लेकर,  अस्पताल गया,
           डॉक्टर के कमरे में जाते-जाते, मेरी आँखों में आंसू का सैलाब बहा,
फिर अपने आप को, संभाल कर, डॉक्टर की बात को सुना,
   वो बोली,आपके होने वाले बच्चे  के लिए, बिधाता ने आज का दिन है चुना.
फिर इन्तजार करते-करते वो घडी आई,
     सबसे पहले नर्से बहार आकर,मुझे देख  मुस्काई,
 भगवान के द्वारा,हमें  भेजा उपहार, बच्चे के रूप में डॉक्टर, बहार लायी.   
     मेरे हाथ में पकड़ा कर बोली,  बधाई हो बधाई,
 मेरी आँखे खुशी से छलक आई.
      आज आपसे मेने,  अपनी, उस दिन की, बात की है,
और अपनी पत्नी अंजलि को, धन्यबाद देने के लिए, ये कविता सौगात  दी है, 

                
              
         

Wednesday, January 12, 2011

जब रोम(भारत) जल रहा था, तो नीरो (मनमोहन) बंसी बजा रहा था.






















मंत्री  यहाँ, घोटालों का व्यापारी बना है.
        पी.ऍम  हमारा, गांधारी बना है.
''आदर्श''  सी.ऍम, विधवाहो का घर लूटता है.
         कुछ भी मांगो तो, तो जनता पर पुलिश का कहर, फूटता है.
कैंसा ये शोर, मचा है.
          लूटने को, अब इस देश में, क्या बचा है?  
अब तो  छोड़ दो, इस ''भारत'' को.
           कब तक सहंगे इस, ''जलालत''  को.
भरोशा कर, तुम नेताओं को  सत्ता दी है.
            पर लगता है, तुमने तो  मदिरा पी है.
तभी तो मध्होसी में, उलटा सीधा बोल रहे हो.
            सोच भी नहीं सकता जो, ऐंसे घोटाले, खोल रहे हो.
वाह मान गए, "तुम" बैमानो को.
            समझते तो पहले भी थे, तुम शैतानो को.
बस, तब हम चुप रहते थे.
             सब कुछ हंस कर, सहते थे,
सोचते थे कि देश हमारा, सोने की खान है,
            कुछ नहीं था, फिर भी कहते ''मेरा देश महान है''
महान तो अब भी है, पर तुम्हारे कारण शर्मसार  है.
            अब समझा में, राजनीती सेवा नहीं,  ब्यापार है,