Wednesday, December 15, 2010

तुम कौन हो?










तुम कौन हो?
         जो मुझे जगाती हो,
तुम कौन हो?
          जो मुझे जगा, खुद खो जाती हो,
तुम कौन हो?
          आँखों में पानी कि तरह, छलक आती हो.
तुम कौन हो? 
           जो हर पल, साथ मेरा निभाती हो.
तुम कौन हो?
            जो मुझ में लगने  वाले आरोप, ख़ुद सह जाती हो,
तुम कौन हो?
            जो मुशकिल समय में, मुझे समझाती हो,
तुम कौन हो?
             जिसे में श्रेय  नहीं देता, फिर भी  खुश  हो जाती हो ,
तुम कौन हो?
            जो मुझे कमझोर छण में, ताकत दे जाती हो.
तुम कौन हो?
            जब ये पुछा, मेने सबसे
                           उत्तर सुनकर, सोच रहां हूँ में तबसे,
क्योंकि कोई तुझे बहम, कोई कहता, हवा है.
                  कोई कुछ भी कहे,मुझे पता है, माँ, ये तेरी दुआ है,
माँ तेरी दुआ है................




Tuesday, November 23, 2010

गद्दारी धार्मिक नहीं होती है .






यह कविता मेने बहुत पहले लिखी थी, लेकिन फिर से रवि इन्दर सिंह का
प्रकरण के बाद, दुबारा प्रकाशित कर रहा हूँ.




माधुरी गुप्ता (और अब रवि इन्दर सिंह) की खबर, कल मेने अखबार में  पढ़ी. 
भावनाए आक्रोश की, अन्दर ही अन्दर इस तरह गढ़ी,
की सबकुछ कम लगने लगा.
हर आई ऍ एस ऑफिसर गदार दिखने लगा.
फिर माँ की, पांचो अंगुली सामान नहीं, वाली बात याद आ गयी.
और पता नहीं किस का, लेकिन क्रोध मत करो, वाली वाणी, मन को भा गयी.
फिर सोचा वो कौन सी मज़बूरी थी, जिससे वो गदार हो गए?
ऐंसा क्या दिया पाकिस्तान ने जो उनके कदर दार हो गए?
क्यों की गद्दारी का तमका तो, कुछ पार्टियों ने, कुछ बिशेष धर्म वालो को दिया है .
आज हिन्दू और सिख धर्म के गदार निकल गए,
                                                तो  अब क्यों  उन्होंने अपना मुख सिया है? 
मुझे नहीं पता की इन खबरों में कितनी सचाई है. 
पर पीठ तो, बड़े बड़े महपुरशो  ने भी  दिखाई है.
बस हमें पता नहीं चलता है.
ईमान धर्म देख के नहीं,नियत देख कर  बदलता है.





Friday, September 17, 2010

किस बात का खुमार मुझ में है.








किस बात का खुमार मुझ में है.
        क्यों गुस्सा बेशुमार  मुझ में है.
मिला नहीं अभी तक कुछ, और
        अभी से उनसे बिछड़ने के दर्द का गुमार, मुझ में है
सपने, हासिल या अपनाना तो दूर कि बात है.
        उनसे तकरार मुझ में है.
गम से राफ्ता रहा, मेरा हरदम
         और खुशियों के लिए बेकरार दिल, मुझ में है,
खता हुई है कही बार मुझसे भी,
         पर उन गलती को स्वीकार करने वाला ईमान, मुझ में है.
दिल बहुत दुखी था, इसलिए लिख रहा हूँ.
         पर दुःख को कविता लिख कर भुलाने का, ब्यवहार मुझ में है.
किस बात का खुमार मुझ में है.
     क्यों गुस्सा बेसुमार मुझ में है

.

Tuesday, September 14, 2010

खेल खेल खेल.

.













खेल खेल खेल.
    कर दिया कॉमन वैल्थ गेम फेल.
अब तो सब इसका ठीकरा,
      एक दूसरे में फोड़ रहे है.
और इस खेल को भारत लाने वाले मणिसंकर,
       अब मुह अपना मोड़ रहे है.
कहते है, इस खेल का बेडा गर्क है.
       इनमे और हमारे दुश्मनों में क्या फर्क है?
असुविधयो के लिए खेल का बहाना लगाते है.
        तीन सालो तक कुछ ना कर पाए, इस राज को छुपाते है.
गुलाम नबी ने तो, डेंगू का कारण देकर, इस खेल का नाम  बर्बाद कर दिया.
        कलमाड़ी ने खुद  कि शाम को  आबाद कर दिया.
वाह इस खेल का बजट, हमारी शिक्षा के बराबर करने वाले ये लोग.
         जिन्होंने भ्रिस्ठाचार के दैत्य को लगाया खुद भोग.
और अब सारी मलाई खाकर, ख़राब दूध का पनीर  बना रहे है.
        हमारे पहले से   गरीब देश को, और ज्यादा फकीर बना रहे है.
कुछ समझ नहीं आता है, चुप रहे या कुछ करें.
        या फिर इस खेल के नाम पर बढ़ी महंगाई और टेक्स को भरें.
         
         
        


Sunday, August 22, 2010

प्यार सबके दिल में जगाना है.



झील से कमल को.
                   दृढ़ता से विमल को.
स्वार्थ से प्यार को.
                   चिलमन से दीदार को.
स्वपन से वास्तविकता को.
                   तुच्छ से व्यापकता को.
जीवन से ईमान को.
                    और स्वाभिमान को.
झूठ से सचाई को,
                   बुरे से अच्छाई को.
रात्रि से प्रभात को,
                    अलगाव से साथ को,
फिर से हमें लड़ाना है.
                    प्यार सबके दिल में जगाना है.

                

Tuesday, August 3, 2010

गालियाँ प्रसिद्ध बनाती है?










बिभूति नारायण राय ने


"छिनाल" शब्द का

प्रयोग कर दिया,

और रातो रात

अपने आप को

प्रसिद्ध कर दिया.

पहली बार टी.वी में

राहुल महाजन नहीं बल्कि ,

साहित्य में चर्चा हो रही थी.

कुछ महिलाएं

न्यूज़ चैनेल में रो रही थी.

कि इस राय ने

बहुत घृणित काम किया है

अपने एक लेख में

औरतों को एक

नया नाम दिया है.

हमने सोचा लो

एक छोटे से शब्द ने

राय को काबिल बना दिया.

अक्ष के छितिज को

साहिल बना दिया.

अब अगर प्रसिद्ध होना है,

तो तुम गालियाँ लिखो.

और जितना चाहते हो उतना

साहित्य के बाज़ार में बिको.

पर भाई हम चांसलर नहीं है,

जो किसी पत्रिका में

लेख लिख सके.

और ना ही ब्लागस्पाट में

मेरे इतने पढने वाले है

जो हम भी

चर्चा मंच में दिख सके.

हमें तो कमेन्ट भी

तब मिलते है जब

हम दूसरो को दे आते है.

और क्या पता वो भी

हमारा बदला चुकाने को,

बिना पढ़े "बहुत सुन्दर"

लिख कर चले जातें है.

Thursday, July 15, 2010

बन गया आदमी जानवर








दिल करता है, भाग जांऊ. पर कहाँ?
मन कहता है, छिप जांऊ, पर कहाँ?
मेने ही  तो,इस दुनिया को ऐंसा बनाया है.
झूठ को मेने रिश्वत के चादर के नीचे छुपाया है
अन्नाय के खिलाफ, कुछ करने वाले को, गाँधी के तीन बंदरो वाला उपदेश समझाया है.
चारो और साम्प्रदायिकता का जहर फैलाया है.
अब खुद बैचैन हूँ, तो भागने कि बात करता हूँ.
अपने बनाये माहोल से छिप जाने कि बात कहता  हूँ.
अपने को ही कोसने  वाला, में लगभग खत्म तेरा ईमान हूँ.
पहली बार मेहनत से कमाया हुआ. तेरे घर का सामान हूँ.
घिन आती है, मुझे खुद पर कि, क्या बन गया में इंसान हूँ.

Wednesday, June 16, 2010

कुछ सवाल

कुछ सवाल जो मुझे झिंझोड़ते  है:-
१) यदि आत्मा अमर है, ना वो जन्म लेती है, ना वो मरती है. तो जनसख्या क्यों बढ़ रही है? नयी जनसख्या के लिए आत्मा कहाँ से आ रही है.

२) भगवान् ने भारत में ही जन्म  क्यों लिया?क्या पूरी पृथ्वी उनकी नहीं है?

३) यदि भगवान् ने प्रक्रति कि रचना कि है तो, अपने प्रिय स्थान(भारत) को प्राकृतिक सम्पदा से क्यों दूर रखा. सोना दक्षिण अफ्रीका, हीरा कनाडा, खनिज तेल खाड़ी देश और भारत को कोयला और अब्रक और  पता नहीं क्या क्या?

४) यदि हमारी संस्कृति दुनिया में सबसे अच्छी है तो.लोग इससे दूर क्यों जा रहे है? और कुछ एक संस्कृति के ठेकेदारों को डंडा लेकर इसकी रखवाली क्यों करनी पड़ती है?

५) क्या सिर्फ 'मेरा भारत महान" कहने से भारत महान हो जायेगा.

६) मन कहाँ होता है, शारीर में?

७) विज्ञानं हर चीज को सिद्ध करता है. लेकिन भगवान् के लिए ये क्यों कहा जाता है कि ये सृधा है.

बाकी सवाल अगली पोस्ट में............................

Thursday, June 10, 2010

भगवान को लालच ओर डर का एक बिंदु बना दिया है

आपने सत्यनारायण भगवान की कथा में, लीलावती की कहानी सुनी होगी, की उसका पति,सत्यनारायण भगवान की कथा के लिए कहता रहता है, और उसके सभी काम सफल होते रहते है.अंत में जब वो कथा नहीं करता तो,
उसको जेल में डाल दिया जाता है. तब उसकी पत्नी और बेटी कथा करती है, और सब कुछ सही हो जाता है. मेरा एक सवाल है अगर हमारे यहाँ इस कथा में, कलावती है. तो जब कलवती ने जो कथा कराई थी, तो उसकी कथा में कौन था?
क्या भगवान् की, डर या लालच देकर ही, पूजा करने के लिए प्रेरित किया जाता है.
तीसरा सवाल भगवान की अगर पूजा ना की जाये या भगवान को ना मना जाये, तो उसका भगवान गलत क्यों करेंगे? क्योंकि वो तो भगवान है हिर्न्याकस्य्प देत्या नहीं जो उनकी पूजा नहीं करेगा उसका गलत करेंगे.
असल में भगवान को लालच ओर डर का एक बिंदु बना दिया है कुछ स्वार्थी लोगो ने, वे ये तो कहते हैं की, १२ साल बाद कुम्भ आया है,जरुर स्नान करिएँ, लेकिन ये नहीं कहते है की, सास्त्रो में लिखा है " मन चंगा तो कठोती में गंगा" अगर कोई नहीं जा सके तो कोई बात नहीं.
वे ये तो कह देते हैं की, चार धाम यात्रा करो, लेकिन ये नहीं कहते की हमारे हर्दिया में भगववान है, उसकी आराधना से भी, वही सुख मिलेगा.
वे ये तो कह देते है, मंगल वार को जीव हत्या करके (मांस) ना खावों.लेकिन ये नहीं कहते की रोज, जो इंसान इंसानियत की हत्या कर रहा है वो ना करे.
वे ये तो कहते हैं की, काम सफल करना है तो इस वार(सोम,मंगल,सनि) के इतने उपवास करो, लेकिन ये नहीं कहते की उस दिन किसी भूखे का पेट भर दे.
वे ये तो कहते है की उस भगवान् के इतनी बार माला जपो, लेकिन ये नहीं कहते की एक बार अपने माँ- बाप को याद कर लो.
पता नहीं ओर क्या क्या आडम्बर इन स्वार्थी लोगो ने हमें अपने स्वार्थ हित करने के लिए कहते है, ओर हम फंस जाते है उनके मकड़ जाल में.
भगवान डर या लालच नहीं है ओर ना ही ये कोई ट्रोफी है? जो दूर पैदल चलकर, मंदिर जाकर या उपवास कर के मिलेंगे, ये एक भाव है जो हमें खुद पहचान के ही मिलते है. जैंसा गौतम बुध ने किया.
कृपा कर के आपसे अनुरोध है की, भगवान को माने, पर स्वार्थी लोगों के बनाये हुए आडम्बर को नहीं, और हाँ में कोई उप्देसक नहीं हूँ. में भी आस्तिक हूँ , लेकिन आँख बंद कर के सब कुछ नहीं मानता और ना मनवाता हूँ.

Tuesday, June 8, 2010

जाने क्या ढूंढता हूँ


हर मुकाम में ,कुछ नया कर गुजरने की सोचता हूँ?
कुछ नहीं आँखों में, फिर भी जाने क्या पोछता हूँ.
पहले सुबह, शंख  की ध्वनि की गूंज से, खुलती थी.
माँ के हाथो की चाय की खुसुबू
   और दादी के रामायण के श्लोको की ध्वनि, हवा में घुलती थी.
बगल में रहने वाले पडोसी, सुबह सुबह हाल चाल पूछने आते थे.
गर है कोई समस्या तो,सारे आपस में मिल कर उसे, हल कर जाते थे.
भटके हुए मुसाफिर, गर रास्ता पूछे तो,
                       उसे गुड पानी पिला कर, घर तक छोड़ आते थे.
बच्चे स्कूल से आने के बाद, खेतो में खूब उधम मचाते थे.
काम उस समय भी करते थे सभी. पर आज से ब्यस्त नहीं.
गलतिया तब भी होती थी लोगो से, पर आज से भ्रष्ठ नहीं.
आज शंख की नहीं,अलार्म की घडी उठाती है.
माँ की चाय की खुशबु नहीं, वाहनों की जहरीली गैंस, फिजा में घुल जाती है.
अब पडोसी, पडोसी को नहीं जानता.
गर नहीं तुम्हारे पास धन तो, अपना अपने को नहीं मानता,
बच्चो के लिए अब खेत नहीं बचे, जो वो खेल सके.
पता नहीं वो दिन कब आएगा जब हम खुद के अन्दर देख सके.
ये ख्वाब ना जाने किती बार में, संभालता और तोड़ता हूँ.
हर मुकाम में ,कुछ नया कर गुजरने की सोचता हूँ?

कुछ नहीं आँखों में, फिर भी जाने क्या पोछता हूँ.

Sunday, May 30, 2010

बचपन की बातें










याद आती  है, वो बचपन की बातें.
मस्ती के दिन, और बेफिक्र रातें.
वो बस्ते से ज्यादा, टिफिन में ध्यान देना.
न चाहते हुए भी, सबसे ज्ञान(सबक) लेना.
वो पीछे की बेंच पर बैठे, दोस्त को सताना.
वो बहार खड़े  भाई को चिढाने के लिए, बाथरूम में गाना.
वो कांच की गोलियों को, डब्बे  में जमा करना.
वो शादी में जाकर, खूब मजे करना.
धूप की चिंता ना, बारिश की फ़िक्र.
अपनी हर बात्तों में, कल देखी फिल्म, का जिक्र.
हो कोई भी मौसम, वो लगता था सुहाना.
गर मूड नहीं स्कूल जाने का तो, पेट पकड़ कर, लेट जाना,
काश वो दिन, हम फिर , अतीत से ढून्ढ लाते.
याद आती है, वो बचपन की बातें.
मस्ती के दिन, और बेफिक्र रातें.

Wednesday, May 19, 2010

पता नहीं ज्यादातर तूफ़ान औरतो के नाम से क्यों रखे जाते है.

रीटा, केटरीना,लिली और अब लैला.
चारो तरफ औरतो के नाम वाला तूफ़ान फैला.
पता नहीं ज्यादातर तूफ़ान औरतो के नाम से  क्यों रखे जाते है.
क्या पुरुष प्रधान समाज, तूफ़ान को, औरत का प्रायावाची बनाना चाहते है.
इस बारे में ज्यादा नहीं कहूँगा.नहीं तो लिंगभेद वाली टिपिनिया हो जायेंगी.
और पड़ लिया मेरी बीबी ने ये पोस्ट, तो मुझे भुन कर, खा जाएँगी.
लो दूसरो को सवाल पूछते-पूछते में  भी, स्त्री बिरोधी टिपिनी कर गया.
अपनी बीबी को इंसान नहीं ड्राकुला साबित कर गया.
यही तो समाज में भी हो रहा है.
खुद गलत काम करने वाला, सत्यवादी बन रहा है.
छोड़ो यार हटाओ अपने सिर से ये झूठ का थैला.
रीटा, केटरीना,लिली और अब लैला.
चारो तरफ औरतो के नाम वाला तूफ़ान फैला.

Wednesday, May 12, 2010

अगर मिलता तो लेते नहीं?

अगर मिलती हमें रिश्वत, तो क्या हम लेते नहीं?
अगर इतना ईमान होता, तो रिश्वत  देते नहीं.
पुलिस वालो को आसानी से मिल जाता है.इसलिए वे ले लेते है.
हम देश की फिकर करने वाले, थोडा गलत काम करते है, इसलिए दे देते है.
वाह भ्र्स्ठाचार की दुहाई देने वाले हम लोग.
जो  भ्र्ठाचार के दैत्य को लगाते है खुद भोग.
और बड़ी बड़ी बातें करते है.
आवाज उठाने में पीछे दुबकते है.
अगर होते इतने बड़े ईमानदार तो इस कदर इस पाप को सहते नहीं
अगर मिलती हमें रिश्वत, तो क्या हम सही में लेते नहीं?

Thursday, April 29, 2010

गदारी धार्मिक नहीं होती

माधुरी गुप्ता की खबर कल आखबार में पढ़ी.
भावनाए आक्रोश की, अन्दर ही अन्दर इस तरह सड़ी
की सबकुछ कम लगने लगा.
हर आई ऍफ़ एस ऑफिसर गदार दिखने लगा.
फिर माँ की, पांचो अंगुली सामान नहीं, वाली बात याद आ गयी.
और पता नहीं किस का, लेकिन क्रोध मत करो वाली वाणी, मन को भा गयी.
फिर सोचा वो कौन सी मज़बूरी थी, जिससे वो गदार हो गयी.
ऐंसा क्या दिया पाकिस्तान ने,  जो उनकी कदर दार हो गयी
क्यों की गद्दारी का तमका तो, कुछ पार्टियों ने, कुछ बिशेष धर्म वालो को दिया था.
आज हिन्दू धर्म की गदार निकली तो इसलिए उन्होंने अपना मुख सिया था.
मुझे नहीं पता की इन खबरों में कितनी सचाई है.
पर पीठ तो बड़े बड़े महपुरशो ने दिखाई है.
बस हमें पता नहीं चलता है.
ईमान धर्म देख के कभी  नहीं बदलता है.

Friday, April 23, 2010

सवांद नगरी की प्रजा {फिर से प्रकाशित}

सवांद ही सवांद नज़र आता है हर  तरफ .
काम नज़र नहीं आता किसी भी तरफ.
सिर्फ बातें ही करता रहता इंसान यहाँ.
कर्त्याव्यनिस्था खो गयी जाने कहाँ.
बातों के भवंर में में भी डूब गया.
अनोजोशी नाम का ब्लॉग बनाया और सो गया.
अब जब समय मिलता है तो लिखता हूँ.
सवांदो के ब्यापार में. में भी बिकता हूँ.
कभी कभी सवांद नगरी के राजाओं के लेख में टिपणी कर लेता हूँ.
नहीं आये समझ तो, दो चार आलोचना कर के, दिल खुश  कर लेता हूँ.

Wednesday, March 24, 2010

अस्मियता

में खबरों में रोज म फ हुसैन की क़तर की नागरिकता स्वीकार करने के बारे में कुछ न कुछ सुन रहा था। बहुत कह रहे थे गलत हुआ इतना शानदार पेंटर को कुछ हिन्दू तत्वों ने भारत से दूर जाने में मजबूर कर दिया। में भी यही मानता था। लेकिन आज मेने जब युटूब में हुसैन की पेंटिंग देखि तो में हिल के रह गया.इतनी घिरणा कोई किसी से कैंसे कर सकता है।अगर ये पेंटर की स्वतन्त्रता है तो उसने सिर्फ हिन्दू देवी देवता के ही चित्र क्यों बनाये? सीता, लक्ष्मी, दुर्गा , गंगा , हनुमान, सबको नग्न वो भी कामुकता दर्शा कर। हद है ऐंसी क्या मज्बोरी थी हुसैन की ?अगर किसी भी धर्म का ये तस्वीर देखेगा तो कभी भी बर्दास्त नहीं कर पायेगा।पर वो अपने विवेक से काम ले। ये हिन्दुओं की अस्मियता पर ठेस नहीं है, पर सभी भारतवासी की अस्म्यिता पर ठेस है। हुसैन साब वही ठीक है । और यदि कभी जहा आप गए वहां यहाँ जैंसी हरकत की तो शायद वो आपको हम जैंसे माफ़ न कर पाए। इसलिए कृपा कर के बाकी काजीवन आराम से बिताये। में उन सभी देवी देवता से आपको सध्बुधि देने और खुस्माया जीवन की कमाना करूँगा । जिनकी आपने नग्न पेंटिंग बनायीं है। समझ नहीं आता हम स्वतंत्रता के नाम पर सब कर सकते है ?

कसक

हाथ में मोबाइल , कान में इअरफ़ोन लगाये एक लड़का आ रहा था।
हम समझे वो बाबा रामदेव का कोई योग दोहरा रहा था।
पर सामने आने पर पता चला की आधुनिकता यही है।
घबराकर दूधवाले से पूछ बैठे ये दूध है या दही है।
लड़का मेरे पास आ कर कहने लगा की जनाब इन्टरनेट चलाना सिखा दो।
हमें भी मोडर्न लोगो की जमात में बैठा दो।
हमने पूछा क्या जरुरत पड़ गयी इसकी तुम्हे।
वो बोला चैटिंग करेंगे डेटिंग करेंगे इसलिए जरुरत है हमें।
तभी उसका छोटा भाई आकर बोला माँ की तब्यित खराब है घर आओ।
वो बोला माँ ने परेसान किया हुआ है, ठीक है आता हूँ तुम घर जाओ।
में बोला भाई इन्टरनेट तो बाद में सीख लोगे, पहले माँ को देखो।
वो बोला सिखाना है तो सिखाओ नहीं तो रास्ता देखो।
हम अच्म्बित हो गए उसकी बात सुनकर।
बैठ गए अपना माथा धुनकर।
की माँ का होश नहीं पर दोस्तों के साथ चैटिंग करना चाहता है।
हॉस्पिटल में माँ को दिखाने की जगह लड़की से नेट में सैटिंग करना चाहता है।
ये देख दिल मेरा घबरा रहा था ।
हाथ में मोबाइल कान में इअरफ़ोन लगाये एक लड़का आ रहा था .....................

Tuesday, March 23, 2010

khumaar

कुछ नया करना चाहते है हम, पुराना हटाकर।
८४ करोड़ देवता तो याद नहीं, ढोंगी बाबा की तस्वीर लगाते है, पूजा में सटाकर।
पुण्य कमा लेते है, अंधे व्यक्ति को सड़क पार कराकर।
पर बजट बिगड़ जाता है, माँ के चश्मे का बिल भराकर
माँ के हाथ का खाना खाने में हीख इन्हें आती है ।
और बाशी बअर्गेर पित्ज़ा देखकर ही भूख इन्हें सताती है।
बगल के किसन चाचा की दूकान जाने में शर्म इन्हें आती है।
और मल्टीप्लेक्स में अपनी चोरो के जैंसे जांच करा कर महंगा खरीदने में कोई आफत नहीं आती है।
कुएं के पानी को गन्दा कहते है।
और जो पिए रसायन युक्त मिनरल वाटर उसे बन्दा कहते है।
घरवालो के लिए टाइम नहीं, पर अमेरिका में चैटिंग से बिना देखे दोस्त की सुध लेते है।
भुज के भूकंप में सिर्फ अफ़सोस और साहरुख की अमेरिका में चेकिंग में दुःख लेते है।
घर के बने खाकी सूती कपडे ख़राब.और ब्रैंड सही है।
लडकियो के १० बॉयफ्रेंड है, टोकने में कहती है ट्रेंड यही है।
क्या लिखे जोशी(में) पुराना मिटाकर।
कुछ नया करना चाहते है हम पुराना हटाकर।