Sunday, December 30, 2012

वैसे ही ये बात भी भूल जायोगे।














लो आ गए आप सब, मोमबत्ती जलाए  हुए।
अपना सब काम छोड़, ब्यवस्था से सताए हुए।
ऐंसा क्या हुआ कि, सारा  आवाम सड़को में उमड़ आया।
दर्द मुझे हुआ और,आंसुओं का बादल तुम्हारी आँखों में घुमड़ आया।
तब तुम कहाँ  थे? जब मेरा शरीर ख़तम हो रहा था।
तब तुम कहाँ  थे?जब तुम्हारी कथित "आधुनिक" सडको पर मुझ पर सितम हो रहा था।
"मेरा काम नहीं था'', यह कह कर तुम, अपना दामन छुड़ा सकते हो।
हमने नहीं देखा, यह कर कर तुम मुझे, झुठला सकते हो।
पर तब तो, तुम थे,जब गुवाहाटी की सडको पर मुझे, जालिम नोच रहे थे।
मुझे बचाते, मेरा दोस्त मुंबई मे  मर गया , तब तुम क्या सोच रहे थे?
में कई वर्षो से  समाज की बनायीं हुई "इज्जत" खोकर, अस्पताल में जी रही हूँ।
इन कुछ उदारण  से तुम्हे अहसास करा रही हूँ।
कि तब तो तुम होते हो,जब तुम्हारे  दोस्त मुझ पर फब्तियाँ  कसते है।
तब तो तुम होते हो, जब तुम्हारे पड़ोस का शराबी, हम पर ज्यादतियाँ  करते है।
तुम, मुझे रोज टीवी पर उपभोग की वस्तु बना हुआ देख, हँसते हो
तुम, संस्कार के नाम पर अपने घरो में भी, सिर्फ मुझे ही जंजीरों में जड़ते हो
अब आ ही गए हो तो, एक अहसान कर देना
एक और "दामिनी" को ना  बनने  देना
पर मुझे पता है, तुम नए साल की ख़ुशी में डूब जाओगे,
और, जैंसा अभी तक तम भूले हो , वैसे ही ये बात भी भूल जायोगे। 
..........................................अनूप  जोशी .....................................




Wednesday, July 4, 2012

भीड़ ,मेरे आस-पास, आज क्यों है!!






ऐ  दिल, चुपचाप  और खामोश  आज  क्यों है.
भीड़ ,मेरे आस-पास, आज  क्यों है!!
दिल की बस्ती में उदासी  सी छाई  है,क्यों
दिवाली के रोज भी, इतनी अंधेरों की खाई है क्यों,
हटते नहीं आँखों से,आँसुओ की बूंदे,
इस जख्म में इतनी गहराई  है क्यों,
सबकुछ पास होकर भी,जुंबा पे ''ये काश '' आज  क्यों है,
भीड़ ,मेरे आस-पास  आज  क्यों है,
हर पल, इतनी देर में कटता है क्यों।.
उजाला, मेरी आँखों में चुभता है क्यों,
उम्मीद तेरे आने की,अभी भी बरक़रार है,,
फिर भी  तेरे नाम से, सीने में दर्द उठता  है क्यों,
अजीब सा तुझसे मिलने का, अहसास आज क्यों है,
भीड़ ,मेरे आस- पास आज  क्यों है!!

Tuesday, June 12, 2012

भ्रर्म क्या चीज होती है


बहुत पहले बचपन में एक दिन में दोपहर में सोया हुआ था,शाम  को जब में उठा तो, एहसास हुआ की सुबह हो गयी है, और जल्दी जल्दी में स्कूल के लिए तैयार हो गया,माँ ने मुझे देख समझ लिया कि, इसे कुछ गलती लगी है,और वो मुस्करा कर बोली कि,अभी तो शाम हो रही है,तब मुझे अहसास हुआ की ये भ्रर्म क्या चीज होती है, फिर जीवन में बहुत से इसी प्रकार के गलतियों से सामना हुआ, पहले माँ समझा देती थी की सुबह नहीं शाम है, लेकिन अब में बड़ा हो गया हूँ, अपने फैसले खुद ले सकता हूँ, इसलिए अपने विवेक का इस्तेमाल करता हूँ, और यहीं से गलतियों में गलतियाँ शुरू हो जाती है, जैंसे मेने  India Shining सुना तो सच में सब जगह Shining दिखता  था, जब India Shining की हवा निकली तो, हर जगह डार्क दिखने लगा,फिर मनमोहन सिंह एक इमानदार आदमी दिखने लगे,और अब वही मनमोहन भ्रष्ट लगने लगे,आखिर ये तश्वीर हमारे सामने लाता कौन है,अगर भड़ास 4  के संपादक  यशवंत सिंह होते तो, टपाक से कहते ''मीडिया''. लेकिन ये मीडिया है कौन, ये भी तो हम ही है, जो अपनी गलती को नहीं देखते और दूसरों  की गलती को इतना दिखाते हैं कि,पूछो मत, अब अमर सिंह की CD तो दिन भर दिखायेंगे ये, पर निरा राडिया से बात करते कुछ "staff " की बातें नहीं दिखायेंगे,खैर छोडिये,  हम बात कर रहे थे गलतियों की,अब लोग अन्ना- अन्ना चिलाने  लगे तो, हम भी बोलने लगे,फिर बाबा रामदेव का समर्थन , सरकार को गाली,नेता  को गाली और पता नहीं जैंसा सब कहते और दिखाते है, हमें वैंसा क्यों  दिखने लगता है? कभी-कभी सोचता हूँ की अब में भेड़-चाल में नहीं आऊंगा  और लोगो से उल्टा बोलने लगता हूँ, और होता क्या है में एक परिहास की वस्तु  बन जाता हूँ,हम चीन के बिकास की सराहना तो करते है, और कहते है, काश यहाँ भी ऐंसे हो, लेकिन जब सरकार उनके जैंसे, मात्र फेसबुक  और गूगल पर नियंत्रण की बात तक करती है तो, रविश कुमार सर prime टाइम में एक घंटे की बहस कर देते है,लोग अधिकारों के हनन की बातें करने लगते है,ऐंसा नहीं है की सब हम गलत सोचते है, पर ज्यादातर हम गलत सोचते है ये पक्का है,यहाँ देह ब्यापार करने वाला तो गलत है, लेकिन मानवता, नैतिकता  तथा नियमो  का व्यापार करने वाला सिर्फ आरोपी, वाह क्या बात है,