Monday, May 9, 2011

अजीबो गरीब ब्लॉग








(चित्र सयोंजन गूगल image )


पता नहीं क्यों,लिखने को मन नहीं करता,
         ऑफिस से घर जाओ तो,ब्लॉग खोलने को जी है, अखरता.
अब पहले जैंसी बात नहीं रही, इस ब्लॉग जगत में,
         कोई भेद नहीं रहा, लेखन के देवता और भगत में.
पहले हम अच्छे  लिखने वालो को,हर दिन  खोजा  करते थे. 
          कमेन्ट लिखेने के लिए भी, घंटो सोचा करते थे,
प्रिय, आदरनीय कहकर, दूसरे को  सम्भोदित करते थे,
         अपने से अच्छा, दूसरे के लेख को घोषित करते थे,
याद है मुझे, जब ब्लॉग  में,  दो पुराने लेखको की लड़ाई हुई.
          हम सब को ऐंसे लगा, जैंसे हमारी जग हँसाई हुई.
पहले सब  नए लेखको का ,सम्मान  करते थे.
          कुछ प्रॉब्लम हो जाये तो साथ मिल कर  समाधान करते थे.  
अब तो पुराने लेखको ने, ब्लॉग को, अघोषित अलविदा कह दिया.
         और ज्यादातर ने अपने, कमेन्ट के थेले को सी दिया,
अब तो लोग बस, नाम के लिए दूसरे को पढ़ते है.
         और कुछ शब्द पढ़ कर, "बहुत खूब'' लिख, चल निकलते है.
ब्लॉगजगत की ये हालत देख, मन बहुत दुखता है,

          पता नहीं क्यों,लिखने को मन नहीं करता है,
 ऑफिस से घर जाओ तो,ब्लॉग खोलने को जी है, अखरता........(२)



        
       

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

थोड़ा मन को विश्राम दीजिये और पुनः जुट जाइये।

Gyan Dutt Pandey said...

सही कह रहे हो बन्धु। मुझे भी, ब्लॉग को जीवित रखना है या अपनी अभिव्यक्ति को जिन्दा रखता है, उसी के लिये पिछले साल भर में लिखी हैं पोस्टें। टिप्पणियों का बार्टर तो आया गया। विशेषत: तब जब पाया कि उनके पीछे बहुधा सम्प्रेषण नहीं, छद्म वर्चुअल रियालिटी है।
शायद बेहतर हो कि आपका एक समूह हो जो अपने अपने ब्लॉग पर लिखता हो और परस्पर एक दूसरे से ट्यूण्ड, एक दूसरे की पोस्टें समझता हो।
एक समूह बने! नहीं?

सहज समाधि आश्रम said...

निसंदेह सही कह रहे हो

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

प्रिय बन्धु वर्तनी में एक दो गलतियां (सम्भवत: हिन्दी IME के प्रयोग के कारण) हैं जिन पर ध्यान दीजियेगा. आदरणीय ज्ञान जी ने अपनी टिप्पणी में सबकुछ लिख दिया है...

Harshvardhan said...

ab kuch naya likhiye

Harshvardhan said...

बंधू , कुछ नया लिखिए.... मेरे बलों पर आने के लिए शुक्रिया... आपके सवाल का जवाब ब्लॉग पर लिख दिया हू......