Sunday, September 12, 2021

ग़ज़ल

 हमने आज कुदरत का अजीब अंदाज़  देख लिया.

रुख से हटा नकाब और, चाँद देख लिया.

सामने मुझे देख कर,उन्होंने  झुखा ली अपनी नज़र,
पता नहीं क्यों हमने इसे, उनकी मोहबत का आगाज़ देख लिया.

कहा नहीं मुझसे कुछ भी, और निहारती रही मुझे.  
हमने इसमें उनकी शर्मो-हया को देख लिया.

महफ़िल जवाँ थी, फिर भी, खाली थे जाम यहाँ.
अब तो जहाँ ने भी उनके हुस्न का नशा    देख लिया.

इन्कारते रहे मेरे प्यार की फरमाईश को, वो.
ऐंसा  क्या उन्होंने हम में दाग देख लिया.

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